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सौर व चन्द्र मास, संवत, और कालगणना – सरल भाषा में संपूर्ण जानकारी

 भारतीय समय-गणना (कालगणना) विश्व की सबसे प्राचीन और वैज्ञानिक प्रणालियों में से एक मानी जाती है। इसमें समय को मापने के लिए सूर्य , चंद्रमा , और उनकी चाल से बनने वाले मास , संवत , और वर्षों का उपयोग होता है। इस लेख में आप जानेंगे— ✔ सौर मास क्या है? ✔ चन्द्र मास कैसे बनता है? ✔ दोनों का अंतर क्या है? ✔ संवत क्या होता है? ✔ कालगणना कैसे चलती है? 1. सौर मास (Solar Month) जब सूर्य एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करता है, तब एक सौर मास पूरा होता है। आकाश को 12 राशियों में विभाजित किया गया है। सूर्य लगभग 30–31 दिन में एक राशि बदलता है। इसी अवधि को सौर मास कहा जाता है। 12 सौर मास (राशि आधारित): मेष वृष मिथुन कर्क सिंह कन्या तुला वृश्चिक धनु मकर कुंभ मीन सौर मास की विशेषताएँ: यह मौसमों (ऋतुओं) के अनुरूप होता है। कृषि कार्य सौर मास के आधार पर अधिक सटीक माने जाते हैं। सूर्य-संक्रांति, मकर संक्रांति, मेष संक्रांति आदि सौर प्रणाली पर आधारित हैं। 2. चन्द्र मास (Lunar Month) चंद्रमा जब पृथ्वी के चारों ओर एक चक्र पूरा करता है, तो...

पंचांग के पाँच अंग – तिथि, वार, नक्षत्र, योग, करण : सरल व विस्तृत जानकारी

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 हिंदू कैलेंडर और ज्योतिष में पंचांग अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है। ‘पंचांग’ शब्द ‘पंच’ + ‘अंग’ से मिलकर बना है, जिसका अर्थ है पाँच मुख्य भागों वाला कैलेंडर । किसी भी शुभ कार्य—जैसे विवाह, गृह प्रवेश, वाहन खरीदी, मुंडन, पूजन, यात्रा—में पंचांग देखकर मुहूर्त निर्धारित किया जाता है। यह पाँच अंग हैं— ** (1) तिथि (2) वार (3) नक्षत्र (4) योग (5) करण ** हर अंग का अपना विशेष आध्यात्मिक, वैज्ञानिक और ज्योतिषीय महत्व है। आइए इन पाँचों को सरल भाषा में समझें। 1. तिथि – चंद्रमा का सूर्य से कोणीय संबंध तिथि चंद्रमा की सूर्य से दूरी (12-डिग्री के अंतर) के आधार पर निर्धारित की जाती है। एक चंद्र मास में कुल 30 तिथियाँ होती हैं— 👉 15 शुक्ल पक्ष (अमावस्या से पूर्णिमा तक) 👉 15 कृष्ण पक्ष (पूर्णिमा से अमावस्या तक) मुख्य तिथियाँ प्रतिपदा द्वितीया तृतीया चतुर्थी पंचमी… दशमी, एकादशी पूर्णिमा अमावस्या महत्व: शुभ व अशुभ तिथियों के आधार पर मुहूर्त चुना जाता है, जैसे— एकादशी उपवास अमावस्या पितृ-तर्पण अक्षय तृतीया आदि। 2. वार – सप्ताह का दिन पंचा...

⭐ ज्योतिष क्या है? – इसके ६ अंग और उद्देश्य

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  (A Complete & Detailed Blog in Hindi) मानव जीवन प्राचीन काल से ही प्रकृति, ग्रह-नक्षत्रों और समय की गति से प्रभावित रहा है। इन्हीं प्रभावों को समझने और जीवन के मार्गदर्शन हेतु विकसित हुई एक महत्त्वपूर्ण विद्या है ज्योतिष । वेदों में ज्योतिष को “आँख” कहा गया है — क्योंकि यह सभी वेदांगों को प्रकाशित करने वाला ज्ञान है। ज्योतिष केवल भविष्य बताने की कला नहीं, बल्कि यह काल-गणना, ग्रह-स्थिति, पंचांग, कर्म-फल, निर्णय और सुधार का विज्ञान है। 🔶 ज्योतिष क्या है? ज्योतिष वह वेदांग है जो ग्रहों, नक्षत्रों, राशियों, समय और घटनाओं का अध्ययन करके मनुष्य को उसके जीवन, कर्म और भविष्य को समझने का मार्ग देता है। संस्कृत में: "ज्योति" = प्रकाश "ईष" = ईश्वर / ज्ञान अर्थात ज्योतिष = प्रकाश देने वाला ज्ञान , जो अंधकार में सही दिशा दिखाता है। 🔱 ज्योतिष के ६ अंग (Shadangas of Jyotisha) प्राचीन वेदों में ज्योतिष को छह भागों में विभाजित किया गया है, जिन्हें षडंग कहा जाता है। प्रत्येक अंग का अपना अलग महत्व है। 1️⃣ गणित (Arithmetic & Astronomy) यह ज्योतिष का...

वैदिक ज्योतिष सम्पूर्ण पाठ्यक्रम - अवधि : 2.5 – 3 वर्ष

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📜 अवधि : 2.5 – 3 वर्ष (यदि पूरी निष्ठा से अध्ययन किया जाए तो इसे 18 महीनों में पूरा किया जा सकता है) यह पाठ्यक्रम तीन स्तरों में विभाजित है : प्रारम्भिक स्तर (Prarambhik – Foundation) — वर्ष 1 माध्यम स्तर (Madhyam – Intermediate) — वर्ष 2 उत्तम / आचार्य स्तर (Uttam / Acharya – Advanced & Predictive) — वर्ष 3 🔹 स्तर 1 — प्रारम्भिक गणित ज्योतिष (Prarambhik Ganit Jyotish) अवधि: 6 – 9 माह 📘 मुख्य विषय A. गणित ज्योतिष (Mathematical Part): ज्योतिष हेतु खगोल शास्त्र की मूल बातें पृथ्वी, राशिचक्र, क्रान्तिवृत्त, खगोलीय विषुवत रेखा, आदि समय गणना — स्थानीय समय (LMT), नाक्षत्रीय समय (Sidereal Time), IST से LMT परिवर्तन सूर्योदय, सूर्यास्त, तिथि, नक्षत्र, योग, करण की गणना ग्रहों की गति — मार्गी, वक्री, स्थिर पंचांग और पंचांग सारणी (Ephemeris) का प्रयोग भाचक्र (Zodiac) के विभाजन — राशि, नक्षत्र, पाद, द्रेष्काण, नवांश आदि B. प्रारम्भिक फलित ज्योतिष (Basic Predictive Intro): बारह भावों (Houses) का अर्थ और महत्व बारह राशियाँ (Signs) — गुण, स्वामी, प्रकृ...

🕉️ आचार्य ज्योतिष पाठ्यक्रम (Uttam Stara – Advanced Level)

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 📅 अवधि: १२ माह (१ वर्ष) 🎯 उद्देश्य: फलित और गणित दोनों को जोड़कर दैव-ज्ञान की गहराई तक पहुँचना। 🌞 पहला माह — दशा-गोचर का संयुक्त अध्ययन विषय: "समय-चक्र का गूढ़ रहस्य" अध्ययन विषय: दशा + गोचर का संयुक्त विश्लेषण कैसे करें ग्रहों के परिणामों में समय का प्रभाव दशा स्वामी का भाव, स्थिति और दृष्टि अनुसार फल गोचर ग्रहों का दशा पर प्रभाव जीवन घटनाओं (जन्म, विवाह, मृत्यु, लाभ, हानि) की समय-संभावना अभ्यास: पिछले वर्ष की प्रमुख घटनाएँ लेकर दशा–गोचर से तुलना करें। JHora → Dasha/Transit Overlay प्रयोग करें। ग्रंथ: बृहत् पराशर होरा शास्त्र अध्याय 46–50 गोचर फल रहस्य — बी.वी. रमन 🌕 दूसरा माह — प्रश्न ज्योतिष (Horary Astrology) विषय: "उत्तर केवल प्रश्न से निकालना" अध्ययन विषय: प्रश्न ज्योतिष का अर्थ – बिना जन्म विवरण के भविष्यवाणी प्रश्न कुंडली बनाने की विधि प्रश्न भावों का अर्थ – विवाह, धन, स्वास्थ्य, आदि प्रश्न फल निकालने के नियम प्रश्न में शुभ-अशुभ योग अभ्यास: किसी मित्र से प्रश्न लें (“क्या यह कार्य सफ...

🪔 ६ माह का फलित ज्योतिष पाठ्यक्रम (Madhyam Stara – Predictive Level)

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  🌞 पहला माह — ग्रह और भावों का अर्थ विषय: "ग्रहों की प्रकृति और भावों का जीवन से संबंध" अध्ययन विषय: ९ ग्रहों का स्वभाव, गुण, मित्र–शत्रु संबंध १२ भाव (भावचक्र) – प्रत्येक भाव का जीवन में अर्थ भावेश (House lord) और भावफल ग्रह दृष्टि (Drishti) और युति (Conjunction) के फल लग्नेश, पंचमेश, नवमेश आदि की व्याख्या अभ्यास: अपनी कुंडली में प्रत्येक भाव का स्वामी लिखें। देखें कौन-सा ग्रह किस भाव में स्थित है और उससे क्या फल निकलता है। एक “ग्रह–भाव नोटबुक” तैयार करें। पुस्तक अध्ययन: बृहत् पराशर होरा शास्त्र अध्याय 16–20 फलदीपिका अध्याय 4–6 सरावली भाव फल अध्याय 🌗 दूसरा माह — योगों का अध्ययन विषय: "राजयोग, धनयोग, अरिष्टयोग आदि" अध्ययन विषय: योग की परिभाषा – ग्रहों की विशेष स्थिति से उत्पन्न फल राजयोग, धनयोग, विपरीत राजयोग, गजकेसरी योग अरिष्ट योग (अशुभ योग) और उनके निवारण लग्नानुसार शुभ-अशुभ ग्रह ग्रह शक्ति और योग बल की गणना अभ्यास: अपनी व २ अन्य कुंडलियों में योग खोजें। गजकेसरी योग और धनयोग की पहचान क...

🕉️ ६ माह का गणित ज्योतिष अध्ययन कार्यक्रम (Prarambhik Stara)

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  🌞 पहला माह — परिचय व आधारभूत ज्ञान विषय: "ज्योतिष का ब्रह्मांड समझना" अध्ययन विषय: ज्योतिष क्या है – इसके ६ अंग और उद्देश्य पंचांग के पाँच अंग – तिथि, वार, नक्षत्र, योग, करण सौर व चन्द्र मास, संवत, और कालगणना राशिचक्र – १२ राशियाँ, २७ नक्षत्र, ४ पाद अयनांश (Ayanamsa) और लाहिरी पद्धति व्यावहारिक अभ्यास: प्रतिदिन पंचांग देखें और तिथि, नक्षत्र, वार लिखें। कागज़ पर राशिचक्र का गोला बनाएं और राशियों को चिन्हित करें। १२ राशियों और ९ ग्रहों के संस्कृत नाम याद करें। पुस्तक अध्ययन: बृहत् पराशर होरा शास्त्र – अध्याय 1–2 सूर्य सिद्धांत – अध्याय 1–2 पंचांग गणना – डॉ. बी.वी. रमन (प्रथम भाग) 🌗 दूसरा माह — समय और खगोल के आधार विषय: "काल और अंतरिक्ष की माप" अध्ययन विषय: समय की इकाइयाँ – मुहूर्त, घटी, कला, संवत, आदि स्थानीय समय (LMT), भारतीय समय (IST), सिदेरियल टाइम सूर्योदय-सूर्यास्त गणना (दृक पद्धति) देशांतर (Longitude) और अक्षांश (Latitude) का प्रभाव सूर्य व चंद्र की गति अभ्यास: अपने नगर का सूर्योदय समय ...