षड्बल (Shadbala) का परिचय: ग्रहों की वास्तविक शक्ति को समझने की कुंजी

  भूमिका वैदिक ज्योतिष में किसी भी कुंडली के सही फलादेश के लिए केवल ग्रह की राशि या भाव स्थिति देखना पर्याप्त नहीं होता। यह जानना भी आवश्यक होता है कि कोई ग्रह कितना शक्तिशाली है। ग्रहों की इसी वास्तविक शक्ति को मापने की जो वैज्ञानिक विधि है, उसे षड्बल (Shadbala) कहा जाता है। षड्बल ग्रहों की शक्ति का एक समग्र और गणनात्मक माप है, जिसके बिना सटीक भविष्यवाणी अधूरी मानी जाती है। षड्बल क्या है? षड्बल दो शब्दों से मिलकर बना है— षड् = छह बल = शक्ति अर्थात, ग्रह की शक्ति को मापने के छह अलग-अलग प्रकार के बलों का संयुक्त नाम ही षड्बल है। यह प्रणाली बताती है कि कोई ग्रह जन्मकुंडली में फल देने में सक्षम है या नहीं। षड्बल का ज्योतिष में महत्व षड्बल के माध्यम से हम यह जान सकते हैं: कौन-सा ग्रह मजबूत है और कौन कमज़ोर ग्रह शुभ फल देगा या अशुभ दशा-अंतरदशा में कौन-सा ग्रह प्रभावी रहेगा योग क्यों फलित हो रहा है या क्यों नहीं 👉 कई बार ग्रह उच्च राशि में होने के बावजूद कमजोर हो सकता है और नीच राशि में होकर भी प्रभावशाली—इस रहस्य को षड्बल ही स्पष्ट करता है। ष...

पंचांग के पाँच अंग – तिथि, वार, नक्षत्र, योग, करण : सरल व विस्तृत जानकारी

 हिंदू कैलेंडर और ज्योतिष में पंचांग अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है। ‘पंचांग’ शब्द ‘पंच’ + ‘अंग’ से मिलकर बना है, जिसका अर्थ है पाँच मुख्य भागों वाला कैलेंडर। किसी भी शुभ कार्य—जैसे विवाह, गृह प्रवेश, वाहन खरीदी, मुंडन, पूजन, यात्रा—में पंचांग देखकर मुहूर्त निर्धारित किया जाता है।



यह पाँच अंग हैं—
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(1) तिथि
(2) वार
(3) नक्षत्र
(4) योग
(5) करण
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हर अंग का अपना विशेष आध्यात्मिक, वैज्ञानिक और ज्योतिषीय महत्व है। आइए इन पाँचों को सरल भाषा में समझें।


1. तिथि – चंद्रमा का सूर्य से कोणीय संबंध

तिथि चंद्रमा की सूर्य से दूरी (12-डिग्री के अंतर) के आधार पर निर्धारित की जाती है। एक चंद्र मास में कुल 30 तिथियाँ होती हैं—
👉 15 शुक्ल पक्ष (अमावस्या से पूर्णिमा तक)
👉 15 कृष्ण पक्ष (पूर्णिमा से अमावस्या तक)

मुख्य तिथियाँ

  • प्रतिपदा

  • द्वितीया

  • तृतीया

  • चतुर्थी

  • पंचमी…

  • दशमी, एकादशी

  • पूर्णिमा

  • अमावस्या

महत्व:
शुभ व अशुभ तिथियों के आधार पर मुहूर्त चुना जाता है, जैसे—

  • एकादशी उपवास

  • अमावस्या पितृ-तर्पण

  • अक्षय तृतीया आदि।


2. वार – सप्ताह का दिन

पंचांग में सात वार सूर्य की स्थिति के अनुसार निर्धारित किए जाते हैं—
रविवार, सोमवार, मंगलवार, बुधवार, गुरुवार, शुक्रवार, शनिवार।

महत्व:
हर वार किसी विशेष देवता और ग्रह का प्रतिनिधि होता है—

  • रविवार – सूर्य

  • सोमवार – चंद्र

  • मंगलवार – मंगल

  • बुधवार – बुध

  • गुरुवार – बृहस्पति

  • शुक्रवार – शुक्र

  • शनिवार – शनि

शादी, यात्रा, व्यापार शुरू करने, औषधि लेने आदि में वार का विचार किया जाता है।


3. नक्षत्र – चंद्रमा का पारगमन

आकाश को ज्योतिष में 27 नक्षत्रों में बाँटा गया है। चंद्रमा लगभग एक दिन में एक नक्षत्र पार करता है। इनका स्वामी और स्वभाव मुहूर्त पर गहरा प्रभाव डालता है।

27 नक्षत्रों के नाम:
अश्र्विणी, भरणी, कृत्तिका, रोहिणी, मृगशिरा, आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य, आश्लेषा, मघा, पूर्वा फाल्गुनी, उत्तरा फाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाती, विशाखा, अनूराधा, ज्येष्ठा, मूल, पूर्वाषाढ़ा, उत्तराषाढ़ा, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद, रेवती।

महत्व:
नक्षत्र शुभ-अशुभ के मुख्य आधार होते हैं, जैसे—

  • पुष्य नक्षत्र अत्यंत शुभ

  • मूल, अश्लेषा, ज्येष्ठा कार्य के अनुसार अशुभ माने जाते हैं।


4. योग – सूर्य और चंद्रमा की संयुक्त गति

योग सूर्य और चंद्रमा की लोंगिट्यूड (अक्षांशीय दूरी) के जोड़ से बनता है। कुल 27 योग होते हैं। ये शरीर, मन, प्रकृति और कर्म के परिणामों का संकेत देते हैं।

कुछ प्रमुख योग:

  • शुभ योग – सिद्धि, शुभ, सौभाग्य, धृति, हर्षण

  • कुछ विशिष्ट योग—व्यतीपात, वैधृति—ज्यादातर कार्यों में वर्जित माने जाते हैं।

महत्व:
योग मुहूर्त का निचोड़ तय करता है—

  • यात्रा

  • खरीदारी

  • संतान-संबंधी कार्य

  • गृह प्रवेश
    इनमें योग का विचार अत्यंत आवश्यक है।


5. करण – अर्ध-तिथि

तिथि का आधा भाग करण कहलाता है। एक तिथि में दो करण होते हैं—
इसलिए एक माह में लगभग 60 करण माने जाते हैं।

करण दो प्रकार के होते हैं:

चालक करण (बार-बार दोहराने वाले)

  • बव

  • बालव

  • कौलव

  • तैतिल

  • गर

  • वणिज

  • विष्टि (भद्रा)

स्थिर करण (सिर्फ एक बार होने वाले)

  • किंस्तुघ्न

  • शकुनि

  • चतुष्पद

  • नाग

महत्व:

  • शुभ कार्यों के लिए विष्टि (भद्रा) करण वर्जित माना जाता है।

  • गर, बालव, कौलव, बव करण शुभ माने जाते हैं।


पंचांग का उपयोग क्यों?

पंचांग के पाँच अंग मिलकर निर्धारण करते हैं—

  • कौन सा दिन शुभ है?

  • किस समय क्या करना चाहिए?

  • ग्रहों की चाल हमारे कार्यों को कैसे प्रभावित करेगी?

  • यात्रा, विवाह, व्यापार, पूजा आदि किस समय लाभदायक होंगे?

इसलिए पंचांग को जीवन का समय-विज्ञान कहा गया है।


निष्कर्ष

पंचांग के पाँच अंग—तिथि, वार, नक्षत्र, योग और करण—सिर्फ धार्मिक नहीं बल्कि ज्योतिषीय और वैज्ञानिक दृष्टि से भी हमारे जीवन की गतिविधियों को संतुलित करते हैं।
इनकी सही समझ से जीवन में आने वाली बाधाओं से बचा जा सकता है और शुभ फल प्राप्त किए जा सकते हैं।

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