सूर्योदय–सूर्यास्त गणना (दृक पद्धति)
Drik Siddhanta-based Sunrise & Sunset Calculation
हिंदू ज्योतिष, पंचांग, और धार्मिक परम्पराओं में सूर्योदय और सूर्यास्त का अत्यधिक महत्व है। तिथि, नक्षत्र, योग, करण, वार, मुहूर्त, राहुकाल, चोगाड़िया, संक्रांति, पर्व—सबकी गणना सूर्य की वास्तविक स्थिति पर आधारित होती है। इसलिए इन समयों की गणना का तरीका भी अत्यन्त सूक्ष्म और वैज्ञानिक है।
आजकल सर्वाधिक प्रामाणिक पद्धति दृक सिद्धान्त (Drik Siddhanta) मानी जाती है, जिसे आधुनिक खगोल-गणित और NASA/JPL के डेटा पर चलने वाले एल्गोरिद्म से निकाला जाता है।
1. दृक पद्धति क्या है? (What is Drik Siddhanta)
“दृक” (दृक्) का अर्थ है—प्रत्यक्ष खगोलीय निरीक्षण।
दृक सिद्धान्त में ग्रह-नक्षत्रों की स्थिति वास्तविक आकाशीय गणनाओं तथा खगोलीय मॉडलों पर आधारित होती है।
दृक पद्धति की विशेषताएँ
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पृथ्वी के घूर्णन (Rotation)
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सूर्य की आभासी गति (Apparent Motion)
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पृथ्वी की परिक्रमा (Revolution)
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वायुमंडलीय अपवर्तन (Atmospheric Refraction)
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स्थानीय अक्षांश–देशांतर (Latitude & Longitude)
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समय क्षेत्र (Time Zone)
इन सभी को मानकर अत्यंत सटीक सूर्योदय-सूर्यास्त समय निर्धारित होता है।
2. सूर्योदय–सूर्यास्त की मूल परिभाषा
सूर्योदय (Sunrise)
सूर्य का ऊपरी किनारा (upper limb) क्षितिज को स्पर्श करते ही सूर्योदय माना जाता है।
यह ज्योतिष मान्य परिभाषा है।
सूर्यास्त (Sunset)
सूर्य का ऊपरी किनारा क्षितिज से नीचे जाते समय अंतिम बार दिखाई दे—उस क्षण को सूर्यास्त कहते हैं।
ध्यान दें: वायुमंडलीय अपवर्तन के कारण सूर्य वास्तविक स्थिति की तुलना में थोड़ा ऊपर दिखाई देता है। इसलिए वास्तविक क्षण में सूर्य और भी नीचे होता है।
3. सूर्योदय-सूर्यास्त की गणना कैसे होती है? (Drik Calculations)
यह गणना कई चरणों में होती है:
(1) स्थानीय निर्देशांक का निर्धारण
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अक्षांश (Latitude)
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देशांतर (Longitude)
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समुद्र तल से ऊँचाई (Altitude)
ये स्थान-विशिष्ट मान गणना की नींव हैं।
(2) सूर्य की वास्तविक स्थिति की गणना
सूर्य की स्थिति के दो मुख्य डेटा लिए जाते हैं:
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सौर विक्षेपण (Solar Declination)
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सौर दैर्घ्य (Solar Longitude)
यह डेटा NASA JPL Horizons मॉडल की तरह के एल्गोरिद्म से प्राप्त होता है।
(3) घंटे कोण (Hour Angle) की गणना
सूर्योदय/सूर्यास्त के क्षण में घंटे कोण (H) इस सूत्र से मिलता है—
जहाँ—
φ = स्थान का अक्षांश
δ = सूर्य का विक्षेपण
0.01454 = वायुमंडलीय अपवर्तन व सूर्य के आधे व्यास का संयुक्त मान
(4) सौर मध्याह्न (Solar Noon)
देशांतर के अनुसार सौर मध्याह्न (दोपहर 12:00) का स्थानीय सुधार किया जाता है।
(5) अंतिम समय निकालना
सूर्योदय = सौर मध्याह्न – (H/15)
सूर्यास्त = सौर मध्याह्न + (H/15)
क्योंकि 15° = 1 घंटे का अंतर।
4. दृक पद्धति क्यों आवश्यक है?
✓ पुरानी पद्धति (सिद्धांत कालगणना) की समस्या
सिद्धान्त गणनाएँ ग्रहों के औसत या मध्य गति (Mean Motion) को मानती हैं,
इससे समय में 2–5 मिनट का अंतर आ सकता है।
✓ दृक पद्धति का लाभ
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पूरी तरह वैज्ञानिक और प्रत्यक्ष खगोलीय आंकड़ों पर आधारित
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विश्वभर के किसी भी स्थान के लिए सटीक
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पंचांग, कुंडली, उपवास, पर्व में पूर्ण प्रामाणिकता
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सरकारी खगोलीय केंद्र (IMD, US Naval) भी यही मॉडल अपनाते हैं
5. सूर्योदय-सूर्यास्त का ज्योतिषीय महत्व
(1) दैनिक पंचांग के लिए
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तिथि परिवर्तन
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वार का आरंभ
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नक्षत्र-योग
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करण
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चन्द्रोदय/चन्द्रोस्त
(2) हिंदू पर्व और उपवास
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एकादशी पर पारण समय
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संकष्टी चतुर्थी में चन्द्रोदय
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करवा चौथ
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छठ पूजा
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रथ सप्तमी
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सूर्य संक्रांति
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होली/दीपावली—मुहूर्त
सब कुछ सूर्योदय-सूर्यास्त पर आधारित है।
(3) ज्योतिषीय गणनाएँ
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लग्न उदय
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दिनमान
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सूर्य-बुद्धि, सूर्य-शक्ति योग
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दशा/अंतर्दशा शुभाशुभ निर्णय में सहायता
6. सूर्योदय-सूर्यास्त में अंतर क्यों आता है?
1. अक्षांश का प्रभाव
उत्तरी भारत में दिन छोटे-बड़े होते हैं,
जबकि भूमध्य रेखा के पास यह फर्क कम दिखता है।
2. ऋतु परिवर्तन
ग्रीष्म में: दिन लम्बे
शीत में: दिन छोटे
3. समय क्षेत्र (Time Zone)
नैऋत्य/पूरब में रहने पर सूर्योदय-सूर्यास्त में अंतर।
4. वायुमंडलीय अपवर्तन
सूर्य 34 arcminutes ऊपर दिखाई देता है।
7. वर्तमान में उपयोग होने वाला डेटा
आधुनिक दृक पंचांग निम्न स्रोतों का उपयोग करते हैं—
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NASA JPL DE430/431
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Swiss Ephemeris
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VSOP87 मॉडल
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IMCCE (France)
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US Naval Observatory
इससे उत्पन्न सूर्योदय-सूर्यास्त जावकगणना सबसे विश्वसनीय मानी जाती है।
8. निष्कर्ष
दृक पद्धति से सूर्योदय–सूर्यास्त की गणना हिंदू धर्म, ज्योतिष और वैज्ञानिक खगोलीय अध्ययनों—तीनों का संगम है।
यह पद्धति विश्वभर में सबसे अधिक प्रामाणिक एवं मानक मानी जाती है।
धार्मिक पर्व, उपवास, मुहूर्त, पंचांग निर्माण और ग्रहों की सटीक स्थिति ज्ञात करने के लिए दृक पद्धति अत्यन्त आवश्यक है।
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