कुंडली के प्रकार – उत्तर, दक्षिण, व हीरे (डायमंड) शैली

  Different Styles of Horoscope Charts ज्योतिष में कुंडली (Birth Chart) किसी व्यक्ति के जीवन, स्वभाव, स्वास्थ्य, करियर, विवाह, ग्रह दशाएँ और भविष्य की संभावनाओं को समझने का मुख्य आधार है। हालाँकि भारत में कुंडली का निर्माण तो एक ही वैज्ञानिक सिद्धांतों से होता है, लेकिन उसे लिखने और चित्रित करने की विधियाँ अलग-अलग हैं। इन विधियों को हम कुंडली की शैली या Chart Style कहते हैं। मुख्य रूप से गणना के अनुसार कुंडली तीन प्रकार की होती है: 🔸 उत्तर भारतीय शैली (North Indian Style) 🔸 दक्षिण भारतीय शैली (South Indian Style) 🔸 हीरे या डायमंड शैली (Diamond/West Indian Style) 🌟 1) उत्तर भारतीय शैली (North Indian Chart) उत्तर भारत में प्रचलित कुंडली हीरों के आकार में बनी होती है , जिसमें प्रत्येक खानों पर भाव (Houses) स्थिर रहते हैं और उनमें राशियाँ बदलती हैं । 🧿 मुख्य विशेषताएँ ✔ भाव स्थिर रहते हैं (1st house हमेशा ऊपर बाईं ओर) ✔ राशियों को संख्याओं (1–12) या चिह्नों से दर्शाया जाता है ✔ ग्रहों को उनकी संबंधित राशियों में लिखा जाता है ✔ विवाह, करियर, लग्न, साझेदारी के विश्ले...

भाव-मध्य व राशि भेद (Bhava-Madhya & Rashi Bhed)

 ज्योतिष में कुंडली का अध्ययन केवल राशियों (Signs) से समझ में नहीं आता, बल्कि ग्रह किस भाव (House) के किस भाग में स्थित है, यह जानना भी अत्यंत आवश्यक होता है। इसी पहचान के लिए “भाव-मध्य (Bhava-Madhya)” और “राशि भेद (Rashi Bhed)” की अवधारणा प्रयोग की जाती है। सही भाव-मध्य और राशि भेद के बिना भविष्य-वाणी गलत भी हो सकती है, इसलिए किसी भी विश्लेषण से पहले इसे समझना आवश्यक है।



🌙 भाव-मध्य (Bhava-Madhya) क्या होता है?

कुंडली के प्रत्येक भाव की एक सीमारेखा और मध्य बिंदु होता है। उसी भाव के मध्य बिंदु को भाव-मध्य कहा जाता है।
यह हमें बताता है कि ग्रह वास्तव में किस भाव में फल देगा, न कि केवल दिखावा किस भाव में करता है।

🔹 उदाहरण:
यदि किसी व्यक्ति के मंगल पहले और दूसरे भाव की सीमा पर स्थित हो, तो उसका असली फल समझने के लिए भाव-मध्य देखा जाता है। यदि भाव-मध्य के अनुसार मंगल दूसरे भाव के करीब है, तो मंगल द्वितीय भाव का फल देगा, न कि प्रथम भाव का।

📌 यही कारण है कि दो लोग एक ही राशि होने पर भी अलग-अलग फल पाते हैं।


🔮 राशि भेद (Rashi Bhed) क्या होता है?

कुंडली के एक भाव में कभी-कभी दो राशियाँ सम्मिलित हो जाती हैं। इसे राशि भेद कहा जाता है।
किस भाग पर कौन-सी राशि का प्रभाव अधिक है, यह जानकर ही ग्रह का वास्तविक फल समझा जाता है।

🔹 जब किसी भाव में दो राशियाँ हों:

  • ग्रह किस राशि में बैठा है?

  • उसी राशि का स्वामी ग्रह उस ग्रह पर प्रभाव डालता है।

  • भाव का स्वामी कौन है और वह कहाँ बैठा है?

📌 जब ग्रह अपनी राशि में नहीं होते, तो फल राशि स्वामी के अनुसार बदल जाता है।


🌟 भाव-मध्य और राशि भेद में अंतर

विषयभाव-मध्यराशि भेद
क्या बताता है?ग्रह कौन-से भाव का फल देगाग्रह किस राशि का प्रभाव ले रहा है
महत्वफल के क्षेत्र को निर्धारित करता हैफल के स्वरूप को बदलता है
निर्भरताभाव विभाजन परराशि के स्वामी पर
उपयोगजब ग्रह सीमा पर होंजब भाव में दो राशियाँ हों

📌 क्यों आवश्यक है?

यदि किसी ग्रह को सिर्फ भाव या राशि के आधार पर देखा जाए, तो भविष्यवाणी गलत हो सकती है।
भाव-मध्य + राशि भेद = सटीक ज्योतिषीय निष्कर्ष

✔️ ग्रह किस क्षेत्र में फल देगा (भाव-मध्य)
✔️ ग्रह किस प्रकृति में फल देगा (राशि भेद)


💠 सरल उदाहरण:

किसी व्यक्ति की कुंडली में शनि:

  • दूसरे भाव और तीसरे भाव की सीमा पर

  • मकर राशि में

🔹 भाव-मध्य अनुसार: यदि शनि तीसरे भाव के निकट है → शनि तृतीय भाव के फल देगा (साहस, पराक्रम, भाइयों से सम्बंध)।
🔹 राशि भेद अनुसार: शनि अपनी राशि मकर में होने से मजबूत, स्थिर और कर्मप्रधान फल देगा।

📌 निष्कर्ष: व्यक्ति मेहनती, संघर्षशील और नेतृत्व गुणों वाला होगा, और भाई-बहनों से व्यवहारिक संबंध रखेगा।


🔯 निष्कर्ष

भाव-मध्य और राशि भेद ज्योतिष का अत्यंत महत्वपूर्ण आधार हैं।
इनकी उपेक्षा करने पर:

  • ग्रह का सही भाव पता नहीं चलता

  • राशि का स्वामी नजरअंदाज हो जाता है

  • भविष्य-वाणी गलत हो सकती है

इसलिए कुंडली विश्लेषण करते समय हमेशा ध्यान रखें:

भाव से पहले भाव-मध्य और राशि से पहले राशि स्वामी देखें।




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