तिथि – गणना, भद्रा, शुभ-अशुभ तिथियाँ
भारतीय पंचांग केवल तिथियों का कैलेंडर नहीं है, बल्कि यह समय की सूक्ष्म, वैज्ञानिक और आध्यात्मिक व्यवस्था है। शुभ कार्यों के मुहूर्त से लेकर व्रत, पर्व और संस्कार—सब कुछ तिथि पर आधारित होता है। इस लेख में हम तिथि की गणना, भद्रा का स्वरूप, और शुभ–अशुभ तिथियों को सरल और व्यवस्थित रूप में समझेंगे।
1. तिथि क्या है?
तिथि चंद्रमा और सूर्य के आपसी कोणीय अंतर (Angular Distance) पर आधारित होती है।
जब चंद्रमा और सूर्य के बीच का कोण 12° बढ़ता है, तब 1 तिथि पूरी मानी जाती है।
एक चंद्र मास में कुल 30 तिथियाँ होती हैं।
तिथियों के दो पक्ष होते हैं:
शुक्ल पक्ष – अमावस्या के बाद से पूर्णिमा तक (15 तिथियाँ)
कृष्ण पक्ष – पूर्णिमा के बाद से अमावस्या तक (15 तिथियाँ)
2. तिथि की गणना कैसे होती है?
तिथि की गणना पूर्णतः खगोलीय (Astronomical) आधार पर होती है:
सूत्रात्मक रूप में:
(चंद्रमा की दीर्घांश − सूर्य की दीर्घांश) ÷ 12 = तिथि क्रम
महत्वपूर्ण बिंदु:
एक तिथि 24 घंटे की निश्चित नहीं होती।
कभी तिथि क्षय (छूट) हो जाती है।
कभी तिथि वृद्धि (दो सूर्योदय तक एक ही तिथि) हो जाती है।
इसी कारण व्रत–पर्व अलग-अलग पंचांगों में अलग तिथियों पर दिख सकते हैं।
3. भद्रा क्या है?
भद्रा एक विशेष काल (कालखंड) है जिसे अधिकांश शुभ कार्यों के लिए वर्जित माना जाता है।
भद्रा का आधार:
भद्रा, विष्टि करण से संबंधित होती है।
यह प्रायः कृष्ण पक्ष की कुछ तिथियों में आती है।
भद्रा के प्रकार:
पाताल भद्रा – सामान्यतः शुभ कार्यों के लिए स्वीकार्य
स्वर्ग भद्रा – अशुभ मानी जाती है
पृथ्वी भद्रा – अत्यंत अशुभ मानी जाती है
भद्रा में क्या न करें?
विवाह
गृह प्रवेश
मुंडन
नवीन कार्य आरंभ
भद्रा में क्या किया जा सकता है?
रक्षात्मक कार्य
शत्रु नाश संबंधी उपाय
न्यायिक / प्रशासनिक निर्णय
4. शुभ तिथियाँ कौन-सी हैं?
शास्त्रों के अनुसार कुछ तिथियाँ स्वभाव से ही शुभ मानी गई हैं:
अत्यंत शुभ तिथियाँ:
द्वितीया
तृतीया
पंचमी
सप्तमी
दशमी
एकादशी
त्रयोदशी
विशेष रूप से श्रेष्ठ:
अक्षय तृतीया
गुरु पुष्य योग की तिथियाँ
अबूझ मुहूर्त वाली तिथियाँ
इन तिथियों में बिना विशेष मुहूर्त के भी कई शुभ कार्य किए जा सकते हैं।
5. अशुभ तिथियाँ कौन-सी हैं?
कुछ तिथियाँ स्वभावतः या विशेष परिस्थितियों में अशुभ मानी जाती हैं:
सामान्यतः अशुभ:
अमावस्या (विशेषतः विवाह आदि के लिए)
चतुर्थी (कुछ कार्यों के लिए)
नवमी
चतुर्दशी
विशेष निषेध:
भद्रा युक्त तिथि
ग्रहण युक्त तिथि
क्षय तिथि
हालाँकि साधना, तप, पितृकार्य, तांत्रिक और शैव साधना के लिए कुछ अशुभ मानी जाने वाली तिथियाँ भी उपयोगी होती हैं।
6. तिथि, भद्रा और जीवन
भारतीय जीवन पद्धति में तिथि केवल धार्मिक विषय नहीं, बल्कि समय प्रबंधन और ऊर्जा संतुलन का माध्यम है।
शुभ तिथि = सकारात्मक ऊर्जा
अशुभ तिथि = सावधानी और आत्मचिंतन का समय
सही तिथि ज्ञान से जीवन के निर्णय अधिक संतुलित और सफल बन सकते हैं।
निष्कर्ष
तिथि, भद्रा और शुभ–अशुभ काल—ये सभी पंचांग के ऐसे स्तंभ हैं जो हमें समय के साथ सामंजस्य सिखाते हैं। केवल घड़ी नहीं, बल्कि आकाशीय गणना पर आधारित यह व्यवस्था भारतीय ज्ञान परंपरा की वैज्ञानिक गहराई को दर्शाती है।
"कालः कर्मफलदाता" — समय ही कर्म का फल देने वाला है।
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