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नवंबर, 2025 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

🌟 स्थिर ग्रह (Stationary) की भूमिका – ज्योतिष में एक निर्णायक क्षण

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 ज्योतिष शास्त्र में ग्रहों की गति केवल मार्गी और वक्री तक सीमित नहीं होती। इनके बीच की एक अत्यंत महत्वपूर्ण अवस्था होती है, जिसे स्थिर ग्रह (Stationary Planet) कहा जाता है। यह वह समय होता है जब ग्रह न तो आगे बढ़ता दिखाई देता है और न ही पीछे—मानो वह एक क्षण के लिए ठहर गया हो। 🪐 स्थिर ग्रह क्या होते हैं? जब कोई ग्रह मार्गी से वक्री या वक्री से मार्गी होने से ठीक पहले या बाद में अपनी गति लगभग शून्य कर लेता है, तब वह स्थिर अवस्था में माना जाता है। ➡️ यह स्थिति कुछ दिनों या घंटों की हो सकती है, लेकिन इसका प्रभाव अत्यंत गहरा माना जाता है। 🔍 स्थिर ग्रह का ज्योतिषीय महत्व स्थिर ग्रहों को ज्योतिष में टर्निंग पॉइंट कहा जाता है, क्योंकि यहीं से बड़े परिवर्तन आरंभ होते हैं। मुख्य प्रभाव: जीवन में ठहराव और गहन सोच बड़े और निर्णायक फैसलों का समय मानसिक द्वंद्व व पुनर्विचार पुराने कर्मों का तीव्र प्रभाव 👉 जो ग्रह स्थिर होता है, वह अपने फल को अत्यधिक शक्तिशाली बना देता है। ⚖️ कुंडली में स्थिर ग्रह का प्रभाव यदि जन्म कुंडली में कोई ग्रह स्थिर अवस्था के पास हो: ...

🌞🌙 सूर्य व चंद्र की गति – वैज्ञानिक, खगोलीय और ज्योतिषीय दृष्टि से संपूर्ण व्याख्या

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   सूर्य और चंद्र—ये दोनों ही आकाशीय पिंड मानव जीवन को सबसे अधिक प्रभावित करते हैं। समय, ऋतु, दिन-रात, पंचांग, तिथि, वार, नक्षत्र—सब कुछ इनके गति-चक्र पर निर्भर करता है। इस लेख में हम समझेंगे कि सूर्य और चंद्र वास्तव में किस प्रकार चलते हैं, विज्ञान इनके बारे में क्या कहता है और भारतीय ज्योतिष/खगोलशास्त्र (दृक पद्धति) इन्हें कैसे समझता है। ⭐  भाग 1: सूर्य की गति (Motion of the Sun) 🔸  वैज्ञानिक दृष्टि से वास्तव में सूर्य स्थिर है और  पृथ्वी सूर्य के चारों ओर एक वर्ष में एक बार परिक्रमा करती है । लेकिन हमें ऐसा प्रतीत होता है कि सूर्य  पूर्व से पश्चिम की ओर  आकाश में घूम रहा है—इसका कारण पृथ्वी का  अपनी धुरी पर घूमना  है। सूर्य की गति से बनने वाली प्रमुख घटनाएँ: 🌅  सूर्योदय और सूर्यास्त 🌓  दिन और रात 🌦️  ऋतुएँ (Seasons) 🧭  सौर दिवस (Solar Day) पृथ्वी सूर्य के चारों ओर  365.256 दिन  में एक चक्कर पूरा करती है, इसी को कहते हैं  सौर वर्ष । 🔸  ज्योतिषीय दृष्टि से (Geocentric View) ज्योतिष में पृथ्वी को ...

देशांतर (Longitude) और अक्षांश (Latitude) का प्रभाव

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देशांतर (Longitude) और अक्षांश (Latitude) का प्रभाव — सम्पूर्ण ब्लॉग पोस्ट भूमिका पृथ्वी पर किसी भी स्थान की सही स्थिति बताने के लिए दो मुख्य भौगोलिक निर्देशांक उपयोग किए जाते हैं— अक्षांश (Latitude) और देशांतर (Longitude) । यही पृथ्वी को एक विशाल जाल (Grid System) की तरह विभाजित करते हैं और यही दो मानक हमारे मौसम, दिन-रात की अवधि, समय क्षेत्र, सूर्य की किरणों की तीव्रता, और मानवीय जीवन तक पर गहरा प्रभाव डालते हैं। इस ब्लॉग में हम विस्तार से समझेंगे कि अक्षांश और देशांतर क्या हैं और ये पृथ्वी पर जीवन को कैसे प्रभावित करते हैं। 1. अक्षांश (Latitude) क्या है? अक्षांश वे काल्पनिक वृत्त हैं जो पृथ्वी को पूर्व–पश्चिम दिशा में घेरते हैं। इनकी गिनती भूमध्य रेखा (Equator = 0°) से उत्तर और दक्षिण दिशा में होती है (90°N और 90°S तक)। अक्षांश क्यों महत्वपूर्ण है? अक्षांश सीधे-सीधे सूर्य की किरणों के कोण को प्रभावित करता है, इसलिए इसका प्रभाव बहुत बड़ा होता है। 2. देशांतर (Longitude) क्या है? देशांतर वे रेखाएँ हैं जो उत्तर ध्रुव से दक्षिण ध्रुव तक खिंची हुई हैं। इनकी गिनती प्रा...

सूर्योदय–सूर्यास्त गणना (शुद्ध भारतीय दृक पद्धति)

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(केवल भारतीय परंपरा के अनुसार लिखा गया लेख) भारतीय ज्योतिष और धर्मशास्त्र में सूर्योदय और सूर्यास्त का समय अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है। हमारे ऋषि-मुनियों ने हजारों वर्ष पहले ही ऐसे सूत्र स्थापित कर दिए थे, जिनसे किसी भी स्थान के लिए सूर्योदय और सूर्यास्त का सटीक समय ज्ञात किया जा सके। यह गणना दो परंपराओं पर आधारित है — 1. सिद्धान्त पद्धति 2. दृक पद्धति (शुद्ध भारतीय दृक) यह दोनों पद्धतियाँ भारतीय खगोल परंपरा से ही निकली हैं। 1. भारतीय दृक पद्धति क्या करती है? भारतीय दृक पद्धति में सूर्य की प्रत्यक्ष (दृष्ट) स्थिति से गणना की जाती है। यह “दृक” — यानी जो आँखों से देखी जा सके — उसके आधार पर समय तय करती है। इसमें मुख्यतः देखा जाता है: सूर्य का क्षितिज पर उदयक्षण सूर्य का क्षितिज पर अस्तक्षण स्थान का अक्षांश–देशांतर ऋतुओं के अनुसार सूर्य का उत्तरायण–दक्षिणायण सूर्य की दैनिक प्रगति (सौरगति) इससे सूर्योदय–सूर्यास्त का समय अत्यंत शुद्धता से प्राप्त होता है। 2. भारतीय परिभाषा: सूर्योदय क्या है? भारतीय परंपरा में सूर्योदय वह क्षण है — जब सूर्य का प्रथम तेज (किरण) पूर्व दिश...

स्थानीय समय (LMT), भारतीय समय (IST), और सिदेरियल टाइम – ज्योतिष व खगोलशास्त्र में इनका महत्व

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 समय की गणना मानव जीवन का आधार है। लेकिन ज्योतिष, पंचांग निर्माण, ग्रह-स्थिति निर्धारण और जन्मकुंडली बनाने में सामान्य समय (Clock Time) पर्याप्त नहीं होता। इन कार्यों के लिए तीन विशेष प्रकार के समय अत्यंत महत्वपूर्ण माने जाते हैं: स्थानीय सौर समय (Local Mean Time – LMT) भारतीय मानक समय (Indian Standard Time – IST) सिदेरियल टाइम (Sidereal Time) आइए इन तीनों को सरल भाषा में समझते हैं। ⭐ 1. स्थानीय सौर समय (LMT) – Local Mean Time क्या है? LMT वह समय है जो किसी स्थान के लॉन्गिट्यूड (देशांतर) के आधार पर सूर्य की स्थिति से गणना किया जाता है। अर्थात् हर शहर का अपना ‘सूर्य आधारित समय’ होता है। ✔ इसे क्यों उपयोग किया जाता है? जन्मकुंडली, मुहूर्त और खगोलीय गणनाओं में सबसे सटीक समय वही होता है जो जन्मस्थान के अनुसार हो , न कि घड़ी के अनुसार। ✔ उदाहरण: भारत का मानक समय मेरठ, दिल्ली या मुंबई के लिए समान है, लेकिन सूर्य का उदय-अस्त, दोपहर की स्थिति, छाया आदि हर शहर में अलग होती है। इसलिए LMT से ही जन्मस्थान का सटीक ‘सौर समय’ मिलता है। ✔ LMT की आवश्यकता: ज्योतिषीय गणनाओं ...

समय की इकाइयाँ – मुहूर्त, घटी, कला, संवत, आदि

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 भारतीय समय-गणना विश्व की सबसे प्राचीन और वैज्ञानिक प्रणालियों में से एक है। यहाँ समय को अत्यंत सूक्ष्म से लेकर विशाल इकाइयों में बाँटा गया है – पल, विपल, कला से लेकर संवत्सर, युग और कल्प तक। इस लेख में हम दैनिक जीवन, ज्योतिष और पंचांग में प्रयुक्त मुख्य इकाइयों को सरल भाषा में समझेंगे। 1. मुहूर्त (Muhūrta) एक दिन में कुल 30 मुहूर्त होते हैं। 1 मुहूर्त = 48 मिनट । सूर्योदय से अगले सूर्योदय तक यह गणना की जाती है। शुभ कार्यों, विवाह, यज्ञ, पूजा आदि में मुहूर्त का अत्यंत महत्व है। उदाहरण: ब्राह्म मुहूर्त = सूर्योदय से लगभग 1.5 घंटे पहले का मुहूर्त, जो साधना के लिए सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। 2. घटी (Ghaṭī) यह भारतीय परंपरा की एक प्राचीन समय इकाई है। 1 दिन = 60 घटी 1 घटी = 24 मिनट (अर्थात् 1/60 दिन) पाल वेल समयमापकों में इसका प्रयोग होता था। उदाहरण: 2 घटी = 48 मिनट = ठीक 1 मुहूर्त। 3. पल और विपल समय की और अधिक सूक्ष्म इकाइयाँ: 1 घटी = 60 पल 1 पल = 24 सेकंड 1 पल = 60 विपल 1 विपल = लगभग 0.4 सेकंड यह दर्शाता है कि प्राचीन भारतीय समय-गणना...

⭐ अयनांश (Ayanamsa) और लाहिरी पद्धति – सम्पूर्ण और सरल ज्योतिषीय व्याख्या

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वैदिक ज्योतिष में अयनांश (Ayanamsa) एक अत्यंत महत्वपूर्ण अवधारणा है। जन्म कुंडली, ग्रहों की डिग्री, दशा, नक्षत्र, लग्न, चन्द्र राशि — ये सब अयनांश पर निर्भर करते हैं। विशेष रूप से लाहिरी अयनांश (Lahiri Ayanamsa) भारत में सबसे अधिक मान्य पद्धति है, जिसे भारतीय पंचांग, कैलेंडर और 90% ज्योतिषी आज भी उपयोग करते हैं। यह लेख आपको अयनांश और लाहिरी पद्धति का पूर्ण, स्पष्ट और वैज्ञानिक विवरण देगा। 🌟 अयनांश (Ayanamsa) क्या है? सूर्य जिस पथ से चलता है उसे क्रांतिवृत्त (Ecliptic) कहते हैं। ज्योतिष में दो प्रकार के राशि चक्र उपयोग किए जाते हैं: 🔹 1. सायन (Tropical Zodiac) — पश्चिमी ज्योतिष में वसंत विषुव (Spring Equinox) को 0° मेष मानकर राशि चक्र बनता है। 🔹 2. निरयन (Sidereal Zodiac) — वैदिक ज्योतिष में नक्षत्रों और तारों की स्थिर स्थिति को आधार माना जाता है। लेकिन समस्या यह है कि: ❗ पृथ्वी की धुरी डगमगाती है इसे कहते हैं — Precession of Equinoxes जिससे: 🌍 विषुव बिंदु (Equinox) हर साल थोड़ा-सा पीछे खिसकता है। इसी खिसकने की मात्रा को कहते हैं — ⭐ अयनांश = विषुव के खिसकने क...

राशिचक्र – १२ राशियाँ, २७ नक्षत्र और ४ पाद | सम्पूर्ण ज्योतिषीय अध्ययन

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वैदिक ज्योतिष में समय , भाग्य , कर्मफल और जीवन की घटनाओं का सबसे महत्वपूर्ण आधार राशिचक्र (Zodiac) है। यही राशिचक्र ३६०° आकाश मंडल को अलग-अलग भागों में विभाजित करता है, जिनके आधार पर: जन्म कुंडली बनती है ग्रहों की स्थिति का फल मिलता है दशा–अन्तर्दशा का प्रभाव समझ आता है नक्षत्रों के गुण, पादों का व्यवहार और जीवन के परिणाम तय होते हैं इसलिए राशिचक्र को समझना वैदिक ज्योतिष की पहली अनिवार्य सीढ़ी है। 🌟 राशिचक्र क्या है? राशिचक्र (Zodiac Belt) आकाश में फैला ३६० डिग्री का गोलाकार पट्टा है, जिसमें सभी ग्रह सूर्य के चारों ओर घूमते हुए दिखाई देते हैं। यही मार्ग क्रांतिवृत्त (Ecliptic) कहलाता है। ✨ इसी 360° को विभाजित किया गया है: १२ राशियों में २७ नक्षत्रों में १०८ पादों में (प्रत्येक नक्षत्र = ४ पाद) 🌟 १२ राशियाँ – प्रत्येक ३०° का क्षेत्र राशिचक्र के 360° को 12 बराबर भागों में बाँटा जाता है: 360° ÷ 12 = 30° प्रति राशि नीचे १२ राशियों का क्रम, स्वभाव और मूल गुण दिए गए हैं: राशि चिन्ह स्वामी ग्रह तत्व प्रकृति 1. मेष ♈ मंगल अग्नि चर 2. वृषभ ♉ शुक्र पृथ्वी स्थिर 3. ...